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ग़ज़ल
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
अगर हूँ ग़ुस्से में फिर भी मैं चाहता ये हूँ
मैं सिर्फ़ हिज्र कहूँ और फ़ोन कट जाए
बालमोहन पांडेय
ग़ज़ल
बेटा बेटी फ़ोन पर अक्सर बताते हैं मुझे
वक़्त मिलता ही नहीं है गाँव आने के लिए