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ग़ज़ल
न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की
किसी के सामने मैं बन गया तस्वीर पत्थर की
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
कहो किस तरह हों क़ाइल सुकून-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर के
ज़रा जुम्बिश हुई पैदा हुए आसार महशर के
हिरमाँ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हाथ रखते ही था हाल-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर आईना
दस्त-ए-नाज़ुक है हसीनों का मुक़र्रर आईना
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
क़ल्ब-ए-मुज़्तर को मिला चैन भरी महफ़िल में
उस ने चिलमन को हटा कर जो दिखाए रुख़्सार
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ-रसीदा है गुलशन ये क़ल्ब-ए-मुज़्तर का
कहीं उजड़ ही न जाए ख़ुशी की बारिश हो
अरशद साद रुदौलवी
ग़ज़ल
सुकून-ए-दाइमी मिलता है क़ल्ब-ए-मुज़्तर को
किसी के दर्द में जब ग़म-गुसार होने लगे
महमूद अशरफ़ मालेग
ग़ज़ल
रहेगा कैफ़ यूँ बाक़ी रहेगा होश यूँ साक़ी
कि मेरा क़ल्ब-ए-मुज़्तर अपने मयख़ाने में रख देना
मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
तिरे ही ज़िक्र से हम को सुकूँ मिल जाता है वर्ना
नहीं जाती हमारे क़ल्ब-ए-मुज़्तर की परेशानी
बेदिल सरहदी
ग़ज़ल
जब तलक साँसों को बू-ए-दिलरुबा मिलती रही
चारागर से क़ल्ब-ए-मुज़्तर को दवा मिलती रही
लईक़ अकबर सहाब
ग़ज़ल
ख़लिश सी उठती है रह रह के क़ल्ब-ए-मुज़्तर में
था कैसा तीर-ए-नज़र जो चुभा गया इक शख़्स
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
ये क्या नग़्मा था छेड़ा जो यकायक क़ल्ब-ए-मुज़्तर ने
कि मेरी नय ने रक़्साँ कर दिया सारे गुलिस्ताँ को