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ग़ज़ल
क़ल्ब-ए-मोमिन की अजब शान है अल्लाह अल्लाह
सर झुकाता हूँ तो अनवार नज़र आते हैं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हो न मायूस कि है फ़त्ह की तक़रीब शिकस्त
क़ल्ब-ए-मोमिन का मिरी जान निखरना है यही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर
वो चौखट मोम की चौखट है या मेरी जबीं पत्थर
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जो शाहों को नहीं हासिल वो जौहर पास रखता है
सुकून-ए-क़ल्ब हर शहज़ादा-ए-इफ़्लास रखता है
मोहम्मद अब्दुल कबीर हनफ़ी
ग़ज़ल
याद-ए-बुताँ में लाख बार फ़र्त-ए-क़लक़ से हम भी तो
बैठे उठे हैं 'मोमिन' आप गिर रहे शब नमाज़ में
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
گھنگھٹ جب زرزری مکھ پر تے موہن دور کر نکلے
مقابل ہوئے نا ہرگز اگر سور سحر نکلے
शेख़ अहमद शरीफ़ गुजराती
ग़ज़ल
फ़िदाई दकनी
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार तिरी शो'बदा-बाज़ी
महमूद सा फ़ातेह भी है मफ़्तूह-ए-अयाज़ी