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ग़ज़ल
लुत्फ़ ज़ाहिर कर दिया दर्द-ए-निहानी देख कर
रहम ने पाई है क़ुव्वत ना-तवानी देख कर
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की
ग़ज़ल
कुछ चुप हैं आइना जो वो हर बार देख कर
कुढ़ते हैं अपनी चश्म को बीमार देख कर