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ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
लिपट के रोने लगे मुझ से शाइर-ए-मशरिक़
जब उन को क़ौम की हालत बता रहा था मैं
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा को बाग़बाँ और क़ौम को हम ने शजर जाना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
जो ग़ाफ़िल थे हुशियार हुए जो सोते थे बेदार हुए
जिस क़ौम की फ़ितरत मुर्दा हो उस क़ौम को ज़िंदा कौन करे
दिल शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
हुब्ब-ए-क़ौमी हो गया नक़्श-ए-सुलैमानी मुझे