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ग़ज़ल
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
सुबुक हो जाएँगे गर जाएँगे वो बज़्म-ए-दुश्मन में
कि जब तक घर में बैठे हैं वो लाखों मन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
दिलदार ओ दिल-फ़रेब दिल-आज़ार ओ दिल-सिताँ
लाखों में हम कहेंगे कि हाँ हाँ तुम्हीं तो हो
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ये दुनिया है यहाँ दिल में समाना किस को आता है
मिटाने वाले लाखों हैं बनाना किस को आता है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
'सनाई' के अदब से मैं ने ग़व्वासी न की वर्ना
अभी इस बहर में बाक़ी हैं लाखों लूलू-ए-लाला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
फूट फूट कर जो रोते हैं वही डुबोने वाले हैं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
ज़माना ख़ूबसूरत है ज़माने में हसीं लाखों
मगर तस्वीर तो तुम हो मिरे ख़्वाबों ख़यालों की
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
गया शैतान मारा एक सज्दे के न करने में
अगर लाखों बरस सज्दे में सर मारा तो क्या मारा