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ग़ज़ल
ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ
वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
वोट न बेचें क्यूँ बेचारे बस कम्बल के बदले में
जो सर्दी में अपनी चमड़ी बिस्तर करें लिहाफ़ करें
सरदार पंछी
ग़ज़ल
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
तेरे ग़मों को रात का बिस्तर बना लूँ मैं
मेरी ख़ुशी को ले के इन्हें तू लिहाफ़ कर