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ग़ज़ल
जंग अना की हार ही जाना बेहतर है अब लड़ने से
मैं भी हूँ टूटा टूटा सा बिखरा बिखरा तू भी है
फ़राग़ रोहवी
ग़ज़ल
इक भाई को दूजे भाई से लड़ने का जो देते हैं पैग़ाम
वो लोग न जाने फिर कैसे जम्हूर की बातें करते हैं
ओबैदुर रहमान
ग़ज़ल
दर्द दिल क्या है खुला आज तिरे लड़ने पर
तुझ से इतनी थी मोहब्बत मुझे मा'लूम न था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फ़क़त नाम-ए-मोहब्बत पर हुकूमत कर नहीं सकते
जो दुश्मन से कभी लड़ने की तय्यारी नहीं रखते
अब्बास दाना
ग़ज़ल
जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़ में लड़ने से क्या हासिल
मैं अपना रास्ता ले लूँ तुम अपना रास्ता ले लो