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ग़ज़ल
सरोद-ए-बाँग-ए-मोअज़्ज़िन नहीं दलील-ए-सहर
मिज़ा पे सुब्ह का तारा नहीं तो कुछ भी नहीं
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
मुवह्हिद वो हूँ गर मैं सिर्र-ए-वहदत कान में कह दूँ
मुअज़्ज़िन बुत-कदे में हों बरहमन ख़ानक़ाहों में
अब्दुल रहमान रासिख़
ग़ज़ल
मुअज़्ज़िन से जो पूछा हाथ रख कर उस ने कानों पर
कहा मुझ को ख़बर है क्या ख़ुदा जाने कहाँ है वो
असग़र निज़ामी
ग़ज़ल
तुम किसी वा'इज़ के चक्कर में जुदा हो जाओगी
मैं किसी बे-सुर मुअज़्ज़िन की अज़ाँ हो जाऊँगा
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
तुझ को सब देते हैं आवाज़ वो अपने हों कि ग़ैर
इस तरफ़ मैं ने मोअज़्ज़िन ने उधर याद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
दिखा दे जल्वा जो मस्जिद में वो बुत-ए-काफ़िर
तो चीख़ उट्ठे मोअज़्ज़िन जुदा ख़तीब जुदा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मोअज़्ज़िन को भी वो सुनते नहीं नाक़ूस तो क्या है
'अबस शैख़ ओ बरहमन हर तरफ़ फ़रियाद करते हैं