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ग़ज़ल
इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है
हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
आदम-ओ-ज़ात-ए-किब्रिया कर्ब में हैं जुदा जुदा
क्या कहूँ उन का माजरा जो भी है इम्तिहाँ में है
जौन एलिया
ग़ज़ल
उस के सुख़न का मो'जिज़ा उस की नहीं में देखिए
हाँ भी है माजरा मगर 'जौन' कहाँ उधर गया