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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ग़ैरों को भला समझे और मुझ को बुरा जाना
समझे भी तो क्या समझे जाना भी तो क्या जाना
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
मोहब्बत करने वालों का यही अंजाम होता है
तड़पना उन की क़िस्मत में तो सुब्ह-ओ-शाम होता है