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ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
अपना आप बयाँ करने के सौ माक़ूल तरीक़ों में से
ख़ामोशी को चुनने वाले उम्दा शाइ'र हो जाते हैं
कनुप्रिया
ग़ज़ल
हम कितने भी ग़लत थे लेकिन लफ़्ज़ हमेशा चुने सहीह
ख़ुद को ना-माक़ूल भी हम ने अगर कहा माक़ूल कहा
विनीत आश्ना
ग़ज़ल
दिल में मिरे चुटकी ली ऐसी है कि दर्द उट्ठा
माक़ूल चे ख़ुश ऐ वाह आप इस को अदा समझे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
कुछ तय नहीं है ज़िंदगी में वक़्त रोने का मगर
माक़ूल है हर एक लम्हा मुस्कुराने के लिए