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ग़ज़ल
अब ख़्वाब नहीं कम-ख़्वाब नहीं, कुछ जीने के अस्बाब नहीं
अब ख़्वाहिश के तालाब पे हर सू मायूसी की काई है
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
'शकील' इस दर्जा मायूसी शुरू-ए-इश्क़ में कैसी
अभी तो और होना है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए
ग़म-ए-बे-हासिली ही इश्क़ का हासिल न बन जाए
चराग़ हसन हसरत
ग़ज़ल
फिर ये सोचों में हैं मायूसी की लहरें कैसी
फिर ये हर दिल में उदासी का गुज़र कैसा है
सुलेमान ख़ुमार
ग़ज़ल
मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं
तुम्हारी चाह में जीने के लाले पड़ते जाते हैं
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
इक दम के न मिलने पे नहीं मिलते हैं मुझ से
ऐ 'शेफ़्ता' मायूसी-ए-उम्मीद-फ़ज़ा देख
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
महरूम-ए-तमन्ना रहने का सन्नाटा खा जाएगा तुम्हें
मायूसी के सकते से बचो आँसू ही बहाओ कुछ तो करो