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ग़ज़ल
आह ये मजमा-ए-अहबाब ये बज़्म-ए-ख़ामोश
आज महफ़िल में 'फ़िराक़'-ए-सुख़न-आरा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर मिरी बालीं पे मजमा' है हसीनों का
फ़रिश्ता मौत का फिर आए पर्दा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत के चमन में मजमा-ए-अहबाब रहता है
नई जन्नत इसी दुनिया में हम आबाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
आड़ी सीधी पड़ती हैं नज़रें तुम्हीं पर आज तो
मजमा-ए-तार-ए-नज़र क्या बद्धियाँ हो जाएगा