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ग़ज़ल
मख़दूम से हम को भी है निस्बत वही 'मंज़ूर'
रिंदों में जिसे निस्बत-ए-पैमाना कहा जाए
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
जो ये कहता था कि मैं हूँ इक निशान-ए-ला-ज़वाल
नक़्श-ए-फ़ानी की तरह मा'दूम कैसे हो गया
क़ासिम जलाल
ग़ज़ल
दोनों जहाँ में ख़िदमत तेरी ख़ादिम को मख़दूम बनाए
परियाँ जिस के पाँव दबाएँ हूरें जिस का काम करें
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
ये ख़ज़फ़ मेरे लिए हैं ये गुहर मेरे लिए
मैं हूँ मख़दूम-ए-जहाँ है ख़ुश्क-ओ-तर मेरे लिए
मक़बूल अहमद मक़बूल
ग़ज़ल
हर किसी के नक़्श में चेहरा तुम्हारा ढूँढना
चौंकना कुछ देख कर और फिर दोबारा ढूँढना
अहसन महमूद मख़दूम
ग़ज़ल
आँसुओं की हाथ पर तहरीर ले कर आई है
या'नी अब मेरी दु'आ तासीर ले कर आई है
मख़्दूम ज़ादा मुख़्तार उस्मानी
ग़ज़ल
दिमाग़ के किसी गोशे से याद ताज़ा कर
फ़रोग़-ए-ज़ुल्मत-ए-शब है ज़रा उजाला कर
मख़्दूम ज़ादा मुख़्तार उस्मानी
ग़ज़ल
मिरे ख़ुदा ये मिरी ज़ात पर करम कर दे
दयार-ए-ज़ीस्त में अब बे-नियाज़-ए-ग़म कर दे
मख़्दूम ज़ादा मुख़्तार उस्मानी
ग़ज़ल
ये समझ लो नाशनास-ए-रह-ए-मंज़िल-ए-वफ़ा है
जो क़दम क़दम पे पूछे अभी कितना फ़ासला है
मख़्दूम ज़ादा मुख़्तार उस्मानी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ख़त-ए-शि'आर पज़ीराई ले गया
मुझ से मिरे ख़ुलूस की सच्चाई ले गया