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ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ज़रा ऐ कुंज-ए-मरक़द याद रखना उस हमिय्यत को
कि घर वीरान कर के हम तुझे आबाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
आए थे बिखेरे ज़ुल्फ़ों को इक रोज़ हमारे मरक़द पर
दो अश्क तो टपके आँखों से दो फूल चढ़ाना भूल गए
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
'रसा' हाजत नहीं कुछ रौशनी की कुंज-ए-मरक़द में
बजाए-शम्अ याँ दाग़-ए-जिगर हर वक़्त जलते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
क़त्ताल-ए-जहाँ माशूक़ जो थे सूने पड़े हैं मरक़द उन के
या मरने वाले लाखों थे या रोने वाला कोई नहीं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मेरे मरने से खुला हाल-ए-मोहब्बत ख़ल्क़ पर
संग-ए-मर्क़द बन गया आईना-ए-अंजाम-ए-इश्क़
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
एक दिया तो मरक़द पर भी जलता है 'आसिम' आख़िर
दुनिया आस पे क़ाएम थी सो आस लगाई मैं ने भी