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ग़ज़ल
तालिब-ए-हुजला-ए-बहार दश्त-ए-तलब है ख़ारज़ार
वक़्त किसी की राह में मसनद-ए-गुल बिछाए क्यूँ
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
نہ کر کس پر زبردستی نہ کس کا دل دوکھانا ہے
یتی کیا مال پرستی خدا کوں موں دیکھانا ہے
अब्दुल क़ादिर क़ादिर बीजापुरी
ग़ज़ल
ज़ंजीरों से बँधा हुआ हर एक यहूदी तकता था
कोसों दूर से बाबुल का रौशन मीनार चमकता था