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ग़ज़ल
मोहब्बत में सहर ऐ दिल बराए नाम आती है
ये वो मंज़िल है जिस मंज़िल में अक्सर शाम आती है
मुशीर झंझान्वी
ग़ज़ल
तिरी बर्क़-पाश-निगाह से तिरे हश्र-ख़ेज़-ख़िराम से
ब-सुकून-ए-क़ल्ब गुज़र गया मैं हर एक ऐसे मक़ाम से
मुशीर झंझान्वी
ग़ज़ल
मेजर ने जुनूँ की है ये तय्यार की पलटन
हाँ देख सफ़-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलान समझ कर
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
इश्क़ की शो'ला-मिज़ाजी ख़ुद ही बरसाती है आग
बाँस के जंगल में अपने-आप लग जाती है आग
मुशीर झंझान्वी
ग़ज़ल
नज़रों की ज़िद से यूँ तो मैं ग़ाफ़िल नहीं रहा
पहलू में ऐ 'मुशीर' मगर दिल नहीं रहा