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ग़ज़ल
जब तक हँसता गाता मौसम अपना है सब अपने हैं
वक़्त पड़े तो याद आ जाती है मसनूई मजबूरी
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
रहेंगे साथ फिर भी हम मोहब्बत मर गई क्या ग़म
कि मसनूई तनफ़्फ़ुस पर गुज़ारा हो भी सकता है
आरिफ़ा शहज़ाद
ग़ज़ल
मसनूई बालों का थप्पड़ काफ़ी भारी होता है
उस की ज़ुल्फ़ों ने हिल हिल के रुख़्सारों को मार दिया