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ग़ज़ल
इसी मिट्टी का ग़म्ज़ा हैं मआरिफ़ सब हक़ाएक़ सब
जो तुम चाहो तो इस जुमले को लौह-ए-ज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
और खिल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में
पेच ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम अभी बाक़ी हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में
पेच ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम अभी बाक़ी हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
ख़ता-मुआफ़ तिरा अफ़्व भी है मिस्ल-ए-सज़ा
तिरी सज़ा में है इक शान-ए-दर-गुज़र फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तुम्हें कह दिया सितम-गर ये क़ुसूर था ज़बाँ का
मुझे तुम मुआ'फ़ कर दो मिरा दिल बुरा नहीं है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
ख़ता-मुआफ़ ज़माने से बद-गुमाँ हो कर
तिरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
दिल-लगी तर्क-ए-मोहब्बत नहीं तक़्सीर मुआफ़
होते होते मिरे क़ाबू में तबीअ'त होगी