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ग़ज़ल
ख़ता-मुआफ़ तिरा अफ़्व भी है मिस्ल-ए-सज़ा
तिरी सज़ा में है इक शान-ए-दर-गुज़र फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तुम्हें कह दिया सितम-गर ये क़ुसूर था ज़बाँ का
मुझे तुम मुआ'फ़ कर दो मिरा दिल बुरा नहीं है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
ख़ता-मुआफ़ ज़माने से बद-गुमाँ हो कर
तिरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
दिल-लगी तर्क-ए-मोहब्बत नहीं तक़्सीर मुआफ़
होते होते मिरे क़ाबू में तबीअ'त होगी