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ग़ज़ल
बद-गुमानी जब न थी तू भी नहीं था मो'तरिज़
मैं भी तेरी शख़्सियत पर नुक्ता-चीं ऐसी न थी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
मो'तरिज़ क्यूँ हो अगर समझे तुम्हें सय्याद दिल
ऐसे गेसू हूँ तो शुबह दाम का हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
आतिश बहावलपुरी
ग़ज़ल
सर-ए-मिंबर है वाइ'ज़ मो'तरिज़ क्यों बुत-परस्ती पर
यहाँ लाज़िम नहीं मर्द-ए-ख़ुदा ज़िक्र-ए-बुताँ करना
अब्बास अली ख़ान बेखुद
ग़ज़ल
क़ैस रामपुरी
ग़ज़ल
कहिए किन लफ़्ज़ों में अश्कों की कहानी लिक्खूँ
मो'तरिज़ आप लहू पर हैं तो पानी लिक्खूँ