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ग़ज़ल
रोज़ ओ शब रहता है तेरी याद में आशिक़ का दिल
गो मुक़स्सिर है तिरी ख़िदमत से गो म'अज़ूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
निकल आया अगर आँसू तो ज़ालिम मत निकाल आँखें
सुना मा'ज़ूर है मुज़्तर निकल आया निकल आया
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कोई मजनूँ की इज़्ज़त इश्क़ की सरकार में देखे
बड़ी ख़िदमत पे ऐसा आदमी मामूर होता है