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ग़ज़ल
ये बजा कली ने खिल कर किया गुलसिताँ मोअत्तर
अगर आप मुस्कुराते तो कुछ और बात होती
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
किस की याद आई मोअ'त्तर हो रहे हैं ज़ेहन-ओ-दिल
किस की ख़ुशबू से है सारा पैरहन महका हुआ
जहाँगीर नायाब
ग़ज़ल
उस की ख़ुश-बू से मोअ'त्तर है मिरा सारा वजूद
तेरे छूने से जो इक फूल खिला है मुझ में
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मोअ'त्तर शाम होगी और महकती हर सहर उस की
तिरी ज़ुल्फ़ों की ये ख़ुशबू जिसे हासिल हुई होगी
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
फूल से ज़ख़्म की ख़ुश्बू से मोअत्तर ग़ज़लें
लुत्फ़ देने लगीं और दर्द से ग़ाफ़िल हुआ मैं
इरशाद ख़ान सिकंदर
ग़ज़ल
मशाम-ए-जाँ न मोअत्तर हो जिस से वो गुल क्या
जो नश्शा ला न सके वो शराब ही क्या है
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
जो तुम परफ़्यूम में डुबकी लगा कर रोज़ आती हो
फ़ज़ा तुम से मोअत्तर है हवा में कुछ नहीं रक्खा
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
फ़ज़ा को तू ने मोअत्तर किया तो क्या हासिल?
मज़ा तो जब है कि फिर लौट कर गुलाब में आ