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ग़ज़ल
सुब्ह-ए-अज़ल है सुब्ह-ए-हुस्न शाम-ए-अबद है दाग़-ए-इश्क़
दिल है मक़ाम-ए-इर्तिबात सिलसिला-ए-दराज़ में
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
इतना तो इर्तिबात हो उस संग-ए-दर के साथ
झुक जाए काएनात भी सज्दे में सर के साथ
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
इश्क़-ए-ला-महदूद जब तक रहनुमा होता नहीं
ज़िंदगी से ज़िंदगी का हक़ अदा होता नहीं