आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "منشا"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "منشا"
ग़ज़ल
अपनी ग़ैरत बेच डालें अपना मस्लक छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मजबूरी-ए-साक़ी भी ऐ तिश्ना-लबो समझो
वाइज़ का ये मंशा है मय-ख़्वारों में चल जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
इश्क़ से तौबा भी है हुस्न से शिकवे भी हज़ार
कहिए तो हज़रत-ए-दिल आप का मंशा क्या है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
आता है जो मुँह पर वो कहे जाते हैं बे-रोक
और उस पे ये फ़िक़रा है कि मैं कुछ नहीं कहता
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
पल्लवी मिश्रा
ग़ज़ल
दुनिया का मंशा है प्यारे हम घुट घुट कर मर जाएँ
दिल की धड़कन ये कहती है इक दिन बदलेंगे हालात
जमील मलिक
ग़ज़ल
उस ने कहा किस से गिला मैं ने कहा तक़दीर से
उस ने कहा तक़दीर क्या मैं ने कहा मंशा तिरा
ताैफ़ीक़ हैदराबादी
ग़ज़ल
न मफ़्हूम उस का फ़ुर्क़त है न मंशा वस्ल है उस का
मोहब्बत अस्ल में इक ख़्वाब-ए-ख़ुद-ता'बीर होती है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
मशिय्यत का ये मंशा है मैं तूफ़ानों में उभरूँगा
ज़माना लाख कर ले साज़िशें मेरे मिटाने की
क़मर उस्मानी
ग़ज़ल
भला क्या होश आएगा बुझेगी क्या लगी दिल की
ये आँचल से हवा देने का मंशा और ही कुछ है