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ग़ज़ल
ख़िरद-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कोई याद आ भी गई तो क्या कोई ज़ख़्म खिल भी उठा तो क्या
जो सबा क़रीब से हो चली उसे मिन्नतों की घड़ी कहा
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
मुल्कों मुल्कों शहरों शहरों जोगी बन कर घूमा कौन
क़र्या-ब-क़र्या सहरा-ब-सहरा ख़ाक ये किस ने फाँकी है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जलने दो उन को और उन्हें देखते रहो
इन मुनकिरों को बुग़्ज़-ए-विलायत न मार दे
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
शाम गए ये मंज़र हम ने मुल्कों मुल्कों देखा है
घर लौटें बोझल क़दमों से बुझे हुए अंगारे लोग
अज़रा नक़वी
ग़ज़ल
जमाल-ए-यार को देखूँ कमाल-ए-यार से पहले
मैं ख़ुश्बू की तरह महकूँ ख़याल-ए-यार से पहले