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ग़ज़ल
सरवत हुसैन
ग़ज़ल
मुनहदिम हो जाएगी 'अख़्तर' फ़सील-ए-इंतिशार
जब नवाह-ए-जाँ में वीरानी का लश्कर आएगा
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
वो मुंहदिम सही दीवार तो मिली ऐ 'रिंद'
उसी के साए में तस्कीन का ठिकाना हुआ
पी पी श्रीवास्तव रिंद
ग़ज़ल
मैं पहले मुंहदिम कर दूँगा हर शय हर त'अल्लुक़ को
फिर उस के बाद धरती पे मकाँ रहने नहीं दूँगा
नून मीम दनिश
ग़ज़ल
गूँजती हैं जिन में अबलाओं की चीख़ें रात-भर
मुंहदिम कर के रहूँगा ऐसे ऐवानों को मैं