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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जो बारिशों से क़ब्ल अपना रिज़्क़ घर में भर चुका
वो शहर-ए-मोर से न था प दूरबीं बला का था
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
दिल से उठा तूफ़ान ये कैसा सारे मंज़र डूब गए
वर्ना अभी तो इस जंगल में नाच रहे थे मोर बहुत
उमर अंसारी
ग़ज़ल
दिल-ओ-दीन-ओ-ख़िरद ताराज-ए-नाज़-ए-जल्वा-पैराई
हुआ है जौहर-ए-आईना ख़ेल-ए-मोर ख़िर्मन में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कोई लौ तक न दी काले पेड़ों को इस आतिशीं रक़्स ने
या'नी जंगल में उस मोर का नाचना भी अकारत गया
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
वो आशिक़ ख़ाल-ओ-ख़त का हूँ नज़्र-ए-मोर करता हूँ
मयस्सर तीसरे दिन भी जो मुझ को दाना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
'दर्द' हर-चंद मैं ज़ाहिर में तो हूँ मोर-ए-ज़ईफ़
ज़ोर निस्बत है वले मुझ को 'सुलैमान' के साथ