आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "مورخ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "مورخ"
ग़ज़ल
जो सदियों की कसक ले कर गुज़र जाते हैं दुनिया से
मुअर्रिख़ को भी उन लम्हों का अंदाज़ा नहीं होता
मुज़फ़्फ़र रज़्मी
ग़ज़ल
मोअर्रिख़ की क़लम के चंद लफ़्ज़ों सी है ये दुनिया
बदलती है हर इक युग में हमारी दास्ताँ और हम
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मुअर्रिख़ गोलियों के ख़ोल गिनते जा रहे थे और
हिकायत लिख रहे थे हम यहाँ मिस्मार जिस्मों की
सबाहत उरूज
ग़ज़ल
क्या सहाफ़ी क्या मुअर्रिख़ कैसे आलिम क्या अदीब
देखते ही देखते बाज़ार दुनिया हो गई
मुजाहिद फ़राज़
ग़ज़ल
दौर-ए-हाज़िर में है अन्क़ा बशरिय्यत का वजूद
सुन मुअर्रिख़ तू इसे दौर-ए-जहालत लिखना
ज़किया शैख़ मीना
ग़ज़ल
मोअर्रिख़ यूँ जगह देता नहीं तारीख़-ए-आलम में
बड़ी क़ुर्बानियों के बा'द पैदा नाम होता है