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ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
शिकस्ता-पा को मुज़्दा ख़स्तगान-ए-राह को मुज़्दा
कि रहबर को सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मुज़्दा कि ना-मुराद-ए-इश्क़ तेरी ग़ज़ल का है वो रंग
वो भी पुकार उठे कि ये सेहर है शाइरी नहीं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वुसअत-ए-आसमाँ सुब्ह-ए-परवाज़ का कोई मुज़्दा सुना
शाख़-ए-हसरत पे बैठे हुए ताइर-ए-बे-नवा के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
जान दी आख़िर क़फ़स में अंदलीब-ए-ज़ार ने
मुज़्दा है सय्याद वीराँ आशियाना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
न शादी-मर्ग हूँ क्यूँकर है मुज़्दा क़त्ल-ए-दुश्मन का
कि घर में से लिए शमशीर वो रोता निकल आया
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ईसा ओ ख़िज़्र तक भी पहुँचे अजल का मुज़्दा
तू तेग़ अगर कमर पर बहर-ए-क़िताल बाँधे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
रूया कहूँ मैं इस को या मुज़्दा-ए-बेदारी
ग़ुल है कि नक़ाब उस ने चेहरे से उठा डाली
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
आशिक़ से मत बयाँ कर क़त्ल-ए-अदू का मुज़्दा
पैग़ाम-ए-मर्ग है ये बीमार तक न पहुँचा