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ग़ज़ल
न मह ने कौंद बिजली की न शोले का उजाला है
कुछ इस गोरे से मुखड़े का झमकड़ा ही निराला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
तुझ को भुला कर जी सकते हैं लेकिन इतना याद रहे
तुझ सा जो भी मुखड़ा होगा आँखों में बस जाएगा