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ग़ज़ल
तब कहीं होता है इक शहद का छत्ता तय्यार
अन-गिनत फूलों का ख़ूँ जब ये मगस पीते हैं
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वाँ तीनीस-ए-यक-मगस आए न हरगिज़ गोश में
जिस जगह शोर-ए-क़यामत साज़-ए-नौबत-ख़ाना था
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़ेब-ए-सर-ए-शहाँ कभी तू ने न देखा तीरा-बख़्त
बाल-ए-मगस ने कब दिला कार-ए-पर-ए-हुमा किया
शाह नसीर
ग़ज़ल
टिकटिकी बाँध के देखा किया इतना कि बना
साया-ए-मर्दुम-ए-दीदा मगस-ए-जाम-ए-शराब
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
निकले हैं ख़त-ओ-ख़ाल लब-ए-यार के नज़दीक
अल्लाह ने दिया शहद-ओ-शकर मोर-ओ-मगस को