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ग़ज़ल
मोहज़्ज़ब दोस्त आख़िर हम से बरहम क्यूँ नहीं होंगे
सग-ए-इज़हार को हम भी तो खुल्ला छोड़ देते हैं
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
मोहज़्ज़ब लोग भी समझे नहीं क़ानून जंगल का
शिकारी शेर भी कव्वों का हिस्सा छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
तुम तक शायद देर से पहुँचे मिरा मोहज़्ज़ब लहजा
पहले ज़रा ख़ामोश तो हों ये शोर मचाने वाले
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
आप की बज़्म-ए-मोहज़्ज़ब में नया हूँ 'शाद' मैं
आते आते बज़्म के आदाब भी आ जाएँगे
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
क्या मोहज़्ज़ब बन के पेश-ए-यार बैठे हैं 'जलील'
आज वो जोश-ए-जुनूँ वो वलवला जाता रहा
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
मोहज़्ज़ब जिन को समझा था सलीक़ा जिन में जाना था
वही अल्फ़ाज़ निकले हैं ज़बाँ से गालियाँ बन कर
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
कुछ देर गुफ़्तुगू में तो शाइस्ता वो रहा
फिर यूँ हुआ कि हम भी मोहज़्ज़ब नहीं रहे