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ग़ज़ल
क्यों तुम रिश्ते-नाते और वो साथ निभाना भूल गए
ऐसी भी क्या बात हुई घर आना-जाना भूल गए
मयंक अकबराबादी
ग़ज़ल
मियाँ मजबूरियों का रब्त अक्सर टूट जाता है
वफ़ाएँ गर न हों बुनियाद में घर टूट जाता है
मयंक अवस्थी
ग़ज़ल
मैं ने कहा हो जल्वा-गर उस ने कहा नहीं नहीं
मैं ने कहा मिला नज़र उस ने कहा नहीं नहीं