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ग़ज़ल
हम कितने भी ग़लत थे लेकिन लफ़्ज़ हमेशा चुने सहीह
ख़ुद को ना-माक़ूल भी हम ने अगर कहा माक़ूल कहा
विनीत आश्ना
ग़ज़ल
हुस्न-ओ-इश्क़ की अन-बन क्या है दिल के फँसाने का फंदा
अपने हाथों ख़ुद आफ़त में जा के ये ना-माक़ूल पड़ा
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
नज़र आएँ तुम्हारी तरह हर इक रोज़ मंज़र पर
ज़रा सा हम भी ऐ प्यारे जो ना-मा'क़ूल हो जाएँ
वाहिद नज़ीर
ग़ज़ल
मस्त नज़रों से अल्लाह बचाए मह-जमालों से अल्लह बचाए
हर बला सर पे आ जाए मेरी हुस्न वालों से अल्लह बचाए