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ग़ज़ल
इश्क़ रुस्वा हो चला बे-कैफ़ सा बेज़ार सा
आज उस की नर्गिस-ए-ग़म्माज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
आँखें न बदलें शोख़-नज़र क्यूँ के अब कि मैं
मफ़्तून-ए-लुत्फ़-ए-नर्गिस-ए-फ़त्ताँ नहीं रहा
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
नर्गिस की आँख की क़सम और गुल के कान की
तुझ को सर-ए-अज़ीज़-ए-गुलिस्तान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
इंतिज़ार उस गुल का इस दर्जा किया गुलज़ार में
नूर आख़िर दीदा-ए-नर्गिस का ज़ाइल हो गया
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ के सिवा नर्गिस-ए-जादू के सिवा
दिल को कुछ और बलाओं ने भी आ घेरा है