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ग़ज़ल
'रसा' गर जाम-ए-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझ को भी
नशीली आँख दिखला कर करो सरशार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला
उन नशीली अँखड़ियों में फिर हिजाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मुख पर रूप से धूप का आलम बाल अँधेरी शब की मिसाल
आँख नशीली बात रसीली चाल बला की बाँकी है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
उफ़ ये नशीली अँखड़ियाँ हाए ये मस्ती-ए-शबाब
माना कि तुम ने पी नहीं कौन कहेगा पी नहीं
असर रामपुरी
ग़ज़ल
साक़ी की नशीली आँखों से सारी दुनिया सारा आलम
बदमस्त हुई बदमस्त हुआ सरशार हुई सरशार हुआ
नूह नारवी
ग़ज़ल
नम नशीली साअतों की सर्द ज़हरीली सी रात
ख़्वाब होते जा रहे हों जैसे बेदारी के दिन