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ग़ज़ल
है निस्फ़-ए-शब वो दीवाना अभी तक घर नहीं आया
किसी से चाँदनी रातों का क़िस्सा छिड़ गया होगा
जौन एलिया
ग़ज़ल
पढ़ता नमाज़ मैं भी हूँ पर इत्तिफ़ाक़ से
उठता हूँ निस्फ़ रात को दिल की सदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
अभी तो निस्फ़ शब है इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-नौ कैसा
दिल-ए-बेदार हम कुछ देर सो लेते तो अच्छा था
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
इसी बाइ'स मैं अपना निस्फ़ रखता हूँ अँधेरे में
मिरे अतराफ़ भी सूरज कोई गर्दिश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
अभी तक निस्फ़ शब को चाँदनी गाती है झरनों में
नहीं बदली शबाब-ए-मुंतज़िर की यादगार अब तक
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
निस्फ़ सद-साल से भी ज़्यादा हुई उम्र तमाम
और किस दिन के लिए उन की मसीहाई है