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ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
नज़र हसीं हो तो जल्वे हसीन लगते हैं
मैं कुछ नहीं हूँ मुझे मेरे हुस्न ही की क़सम
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
देख कर नज़म-ए-दो-आलम हमें कहना ही पड़ा
ये सलीक़ा है कसे अंजुमन-आराई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
कभी सोचा भी है ऐ नज़्म-ए-कोहना के ख़ुदा-वंदो
तुम्हारा हश्र क्या होगा जो ये आलम कभी बदला