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ग़ज़ल
लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और इक खट्टी गोली थी
ख़ून में डूबी इक तख़्ती पर ग़ैन-ग़ुबारा लिक्खा था
अहमद सलमान
ग़ज़ल
नन्हे होंटों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अब भी अक्सर ख़्वाब में उन के धुँदले चेहरे आते हैं
मेरी गुड़िया की शादी में जो नन्हे बाराती थे
फ़रहत ज़ाहिद
ग़ज़ल
मुझे याद आती है अक्सर कड़ी वो धूप बचपन की
वो नन्हे हाथों से कचरा उठाना याद आता है
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
मत देख हिक़ारत से उन को अंदाज़ा नहीं है तुझ को अभी
शबनम के ये नन्हे क़तरे भी शो'ले को शरारा करते हैं