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ग़ज़ल
उंसुर है ख़ैर ओ शर का हर इक शय में यूँ निहाँ
हर शम'-ए-बज़्म नूरी-ओ-नारी है जिस तरह
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
हम ने इक उम्र में क्या क्या न जहाँ देखे हैं
आसमाँ देखे हैं और क़ा'र-ए-निहाँ देखे हैं
साजिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
बला का शोर-ओ-फ़ुग़ाँ है निहाँ ख़मोशी में
मैं खुल के सामने आया हूँ पर्दा-पोशी में
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
लाएक़-ए-दस्तार आख़िर कोई सर होना ही था
इक न इक दिन तो ये क़िस्सा मुख़्तसर होना ही था
माहिर सिवहारवी
ग़ज़ल
मुफ़लिसी ने सर पे इक सादा ज़रूरत ओढ़ ली
नक़्द-ए-हुरमत बेच कर बदले में ग़ुर्बत ओढ़ ली
ग़ुलाम मुस्तफ़ा दाइम
ग़ज़ल
दिल-ए-ना-मुतमइन अंदेशा-ए-बर्क़-ए-तपाँ में है
जो बे-ताबी क़फ़स में थी वही अब आशियाँ में है
निहाल सेवहारवी
ग़ज़ल
बहुत सरशार था अपने सरासर जोश में दरिया
तमांचे मौज के खाए तो आया होश में दरिया