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ग़ज़ल
क़ाफ़िया बहर रदीफ़ वग़ैरा जैसे हरीफ़ ज़रीफ़ वग़ैरा
इन को ठंडा सोडा पिलाओ भाई ये कब का क़िस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
'सग़ीर' ओहदे वग़ैरा हैं ज़रूरत और लोगों की
फ़क़ीरी में किसी का कोई भी मंसब नहीं होता
सग़ीर अहमद सग़ीर
ग़ज़ल
जिस में मंज़िल ही मिले छाले वग़ैरा न मिले
पाँव उस राहगुज़र में नहीं रक्खा जाता
दीपक प्रजापति ख़ालिस
ग़ज़ल
ग़ज़ल अंसारी
ग़ज़ल
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
मिलने लगा है शायद अब तुम से कोई ख़ीरा
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
तअ'ल्लुक़ और शिकायत लाज़िम-ओ-मलज़ूम होते हैं
अगर बाहम वतीरा दरगुज़र होता तो अच्छा था