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ग़ज़ल
ऐ जुनूँ उस्ताद बस ख़म ठोंक कर आ जाइए
हाँ ख़लीफ़ा हम भी देखें पहलवानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हो गई ख़म ठोंक कर देव-ए-ख़िज़ाँ के सामने
क्या कसीले हैं जवानान-ए-चमन के हाथ पाँव
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
भला मुझ से देव के सामने कोई ठोंक सकते हैं ख़म भला
अरे ये अंगूठे से आदमी तो बिचारे ख़ुद हैं बटेर से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
बे-ख़तर ठोक के ख़म जंग के सामान में आ