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ग़ज़ल
कोई ख़्वाब सर से परे रहा ये सफ़र सराब-ए-सफ़र रहा
मैं शनाख़्त अपनी गँवा चुका गई सूरतों की तलाश में
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
यहीं पड़े रह जाएँगे सब माल ख़ज़ाने धन-दौलत
मौत पड़ी है तेरे पीछे भाग सके तू जितना भाग