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ग़ज़ल
इश्क़ है अपना पाएदार तेरी वफ़ा है उस्तुवार
हम तो हलाक-ए-वर्ज़िश-ए-फ़र्ज़-ए-मुहाल हो गए
जौन एलिया
ग़ज़ल
बिला-ग़रज़ सादा सादा बातों से डाल दें रस्म दोस्ती की
जो सिलसिला इस तरह चलेगा वो लाज़िमन पाएदार होगा
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
वो डोल डालें किसी कार-ए-पाएदार का क्या
जो बे-सबाती-ए-उम्र-ए-रवाँ में रहते हैं