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ग़ज़ल
वा'दा क्या किसी बात के पाबंद नहीं हैं
बूढ़े हैं ना जज़्बात के पाबंद नहीं हैं
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं
रहम ऐ बुतो कि हम भी तो बंदे ख़ुदा के हैं