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ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
हूँ इसी जुर्म की पादाश में प्यासा शायद
तपते सहराओं को दरिया नहीं लिख्खा मैं ने
हामिद मुख़्तार हामिद
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
ये कैसे जुर्म की पादाश है ये ज़िंदगी जिस से
रिहाई मिल तो जाती है सज़ा पूरी नहीं होती
फ़रियाद आज़र
ग़ज़ल
फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले
मगर इक जुर्म की पादाश में जन्नत से हम निकले