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ग़ज़ल
क्या अजब ख़ेमा-ए-जाँ तेरी तनाबें कट जाएँ
इस से पहले कि हवाओं में उछाले मुझे कोई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'मुनीर' अच्छा ज़रीया है अलाएक़ क़त्अ करने का
अजल का आसरा गोया है जाँ का पालने वाला