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ग़ज़ल
गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गए ख़ुदा तक
तिरी रहगुज़र से जाते तो कुछ और बात होती
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
हम भी मंज़िल पे पहुँच जाएँगे मरते खपते
क़ाफ़िला यारों का जाता है अगर जाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं
वो मौजें सर पटकती हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
दरिया के किनारे तो पहुँच जाते हैं प्यासे
प्यासों के घरों तक कोई दरिया नहीं जाता